पतंग बाज़ी

अबे यार रसिया! ई बताओ, के सवेरे सवेरे ही छता पे चढ़ के कौन से कन्ने बांधत हो बे…? हमरी मानों तो एक ठो कबूतर उड़ा दो हिया से, का पता बे हुँआ से चिट्ठी आ ही जाए तुम्हरे नाम की. और जो ना आई तो समझ लियो कि भौजी मनिहैं नाही. कम से कम ई रोज रोज की चठाई से तो बचिहौ. सही बताए रहे हैं तुमका।

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